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छापेमारी : जिस मनरेगा घोटाले में पूजा सिंघल पर हो रही है कार्रवाई, जानिए! उस वक्त किसकी थी सरकार?

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रांचीः

आईएएस पूजा सिंघल की मनरेगा घोटाले में संलिप्तता पर ईडी की कार्रवाई जारी है. उनके पति के पल्स हॉस्पिटल में दूसरे दिन भी ईडी की जांच चल रही है. इस बीच सोशल मीडिया पर कई लोग यह पोस्ट कर रहे हैं कि पूजा सिंघल से जुड़ा यह मामला कब का है और उस वक्त झारखंड में किसकी सरकार थी. इस खबर में यह दोनों जानकारी द फॉलोअप आपको देगा. 

 

2010 का है मामला, खूंटी में दर्ज हुआ था अनियमितता का मामला

मनरेगा घोटाले को लेकर 18 सितंबर 2010 को 10.16 करोड़ की अनियमितता का मामला खूंटी थाने में दर्ज हुआ था. इस केस के अनुसंधान का जिम्मा एसीबी को नहीं मिला था. वहीं अनियमितता के दूसरे मामलों समेत मनरेगा केस के भी आरोपी रहे रामविनोद सिन्हा के खिलाफ दर्ज केस एसीबी में ट्रांसफर हुए थे, जिनकी जांच एसीबी ने की थी. निगरानी विभाग के आदेश पर इन दोनों मामले की जांच एसीबी को दी गयी थी.

 

अर्जुन मुंडा थे मुख्यमंत्री, भाजपा की थी सरकार

खूंटी थाने में जब यह मामला दर्ज हुआ था तब राज्य में भाजपा की सरकार थी. और उसके मुखिया यानी कि मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा थे. उस वक्त सुदेश महतो राज्य के उपमुख्यमंत्री थे. वर्ष 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और उपमुख्यमंत्री सुदेश महतो ने खूंटी में मनरेगा घोटाले की जांच एसीबी से कराने के आदेश दिए थे.

 

पूजा सिंघल को मिलता था पांच प्रतिशत कट मनी

ईडी ने मनरेगा घोटाले की जांच में पाया था कि खूंटी में जूनियर इंजीनियर के पद पर रहते हुए रामविनोद सिन्हा ने कट मनी का पांच प्रतिशत अपने सीनियर अफसरों को, जबकि पांच प्रतिशत डीसी ऑफिस को कमीशन के तौर पर दिए थे. बदले में उसे तत्कालीन डीसी का संरक्षण भी मिला था. रामविनोद सिन्हा ने पूर्व में ईडी के समक्ष कबूला था कि प्रत्येक योजना के आधार पर उसमें शामिल प्रशासनिक अधिकारियों को पैसे दिए थे. पूजा सिंघल फरवरी 2009 से जुलाई 2010 तक मनरेगा की जिला को-ऑर्डिनेटर सह डीसी थीं. हालांकि विभागीय जांच में भी पूजा सिंघल को झारखंड सरकार के अधिकारियों ने क्लीनचिट दे दी थी.